कहीं शिद्दतों की नुमाइशें ,कहीं हौसलों का गुरुर है
मेरी शामतें भी करीब है, मेरे सर पे एक इक जूनून है
मैंने रास्ते चुने नहीं ,मुझे मंजिलो की खबर नही
मेरी रूह में इक पुकार है ,मुझे बस उसी का शुरूर है
मेरी नेमते सब किधर गयी ,मै राह से भी उतर गयी
मुझे शक़ है मेरी नस्ल में खुदा का असर जरुर है
हर दो क़दम पे हादसो की रौनकों का हुजूम है
कहीं चार दम की जिंदगी और बस जरा सा सुकून है
यु ही यक -ब -यक की दिल्लगी सी राहतो से गुजर गये
वरना क़सम से यू कहे कि जिंदगी है कि क़ुसूर है
- रचना