Saturday, August 8, 2015

प्रेम की दो बात

उफ्फ !!! मै  कैसा महसुस  करती हूँ ??
मै  कहती हूँ कि  मै  बहरी हूँ… इसका मतलब ये नहीं कि  मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ता … इसका मतलब ये है कि मै पल पल इतनी चीखो से घिरी हुई हूँ कि उनके सामने सिर्फ बहरा ही हुआ जा सकता है ....... 
सिर्फ मेरे "बहरी हूँ ' कहने भर से क्या तुम समझोगे कि मै कैसा महसूस करती हूँ…… पर कहूँगी मै इतना ही, ये तय है। 

ओह ! तुम, जो कहते हो कि मुझ से प्रेम करते हो …… तुम सुनो कि मुझ से प्रेम करने से पहले तुम्हे ये जानना होगा कि मै कैसा महसूस करती हूँ वरना तो तुम मुझे एक कठोर ह्रदय से ज्यादा कुछ नहीं समझोगे।
               
                      तुम्हे अपनी आत्मा तक को जिन्दगी कि कड़ी धुप में सूखने देना होगा ……, इतना सूखने देना होगा कि वो जरा सी चोट से कड़- कड़ करके टूट जाए , समय कि चक्की में उसे निर्दयता पूर्वक  महीन -महीन 
पिसने देना होग ……  और फिर अचानक ही सांस कि हवा से उस के कण कण को बिखर जाने देना होगा .......  
और !! उसके बाद गुजारते रहना अपना पूरा जीवन ....... और कितने जीवन उस के कण कण को इक्कठा करते रहने में , जबकि तुम अच्छी तरह से जानते हो कि तुमने अपनी आत्मा के साथ ये सब " हो जाने दिया ". 

अब समझो मै कैसा महसूस करती हूँ.…, यही मेरी जिन्दगी है , मुझे हर पल लगता है मेरी जिन्दगी एक शून्य के अलावा कुछ भी नहीं , जहाँ से शुरु हुई अंत वही पे होगा …  एक निरर्थक बक - झक !
ओह ! फिर भी मै दौड़ती  तो हूँ  ही , कभी इस अंश के पीछे , कभी उस अंश के पीछे !!!

और तभी तुम आकर मुझ से कहोगे  कि तुम्हे मुझ से प्रेम है.......  तो तुम्हे क्या लगता है  कि मै तुम्हारी इस प्रेम से हरी - भरी आत्मा  को देखकर  इसकी छाँव में आराम करने का सोचूंगी ……, नहीं ! हरगिज नहीं !
बल्कि मै विरक्त भाव से गुजर जाउंगी। 

और तुम !!! सुनो … हाँ तुम  जिस पर मुझे प्रेम आ जाता है , तुम जिसे देखते ही महसूस हो जाता है कि तुम कैसा महसूस करते हो ....... ,  और मेरा यही विचार कि काश ! हम अपनी अपनी आत्मा के अंशो कि खोज साथ साथ करे .......  यही साथ का विचार ही मेरा तुम्हारे प्रति प्रेम है।  ना तो तुम निश्चित जानते हो  कि तुम्हारे हिस्से कहां उड़ गये ,ना तो मै .......  पर इतना जरुर लगता है कि आत्मा के वो दोनों हिस्सों को जो हवा उड़ा  उड़ा ले गयी , एक ही दिशा  की ओर गयी थी। 

मैंने कही सुना था निरर्थक जीवन को अर्थ प्रेम देता है , तो इस पाए हुए को खोना और ढूँढ के फिर से पाने  -खोने  के निरर्थक जीवन में साथ का ही अर्थ मालुम होता है।  ये साथ ही प्रेम है।