मैं तुम से प्यार कर भी लूं, तुम मुझ से कर ना पाओगे
फिर होगा यूँ इस बात से , हर बात पे रुलाओगे
मैं तुमसे प्यार करके तुम्हारी आँखों मे झांकूँगी
वहां गहराइयां ना पाके फिर खुद ही को डाँटूंगी
मैं खुद से कहूंगी, ले बता अब कहाँ मैं डूब मरूँ
और अगर जीती रही तो तुमसे प्यार क्यूँ करूँ।
कि मैंने सुना है इश्क़ में तो डूब जाना होता है
खुद को फ़ना करके ही फिर खुद को पाना होता है।
मैं तुमसे प्यार कर भी लूं...... फिर होगा यूँ.........
मैं तुमसे प्यार करके तुम्हारे चेहरे को बांचूंगी
और सीधी कही बात को भी,उलट- पुलट कर जांचूंगी
तेरे आते - जाते भावो में, तेरी रूह के दरवाजे ढूंढूंगी
और बंद दरवाजो से टकरा कर ,फिर खुद ही को मैं कोसूंगी
खुद से कहूंगी ले बता, ये रूह तो दरवाजो के पीछे मौन है
अब किस से प्यार मैं करूँ, यहां मेरा अपना कौन है
कि मैंने सुना है इश्क़ में रूह , रूह को बुलाती है
एक रूह की सदा दूजी को छू के जाती है।
मैं तुमसे प्यार कर भी लूं...... फिर होगा यूँ........
मेरी बातों को सुनके तुम थोड़ा सा मुस्काओगे
और सुकूँ से बैठ कर मुझे हौले से समझाओगे।
अजी छोड़िये भी अब,तुम्हारे ये रूहानी किस्से
ऐसी मोहब्बत रह गयी है,सिर्फ किताबो के हिस्से।
ये बात सुनकर मैं फिर अंदर तक हिल जाउंगी
तुम कह रहे हो ये बात , यकीं नही कर पाउंगी।
तुमसे कहूंगी तो फिर, बन क्यों नही जाते हो किताब
ऐसी मोहब्बत का फिर, तुमसे भी होगा हिसाब।
फिर तुम कहोगे देवी जी! किताब तो मैंने बना ली
पर अंदर कागज कोरे है ये बात मैंने छुपा ली।
सारी स्याही मैंने जिल्द सजाने में लगा दी
और इस तरह अंदर लिखने वाली हर बात मैंने गंवा दी।
अब इस किताब की जिल्द देख सब लोग खींचे चले आते है
पर जिल्द खोलकर पढ़ने की जहमत नही उठाते है।
मैं भी खुश हूं चलो यहां सब जिल्द देखने वाली है
वैसे भी कोई क्या पढ़ेगा, किताब तो अंदर खाली है।
तुम जिल्द देखकर आयी , पर ठहर वहां नही पायी
तुमने किताब खोलनी चाही , पर हाथ लगी रुसवाई।
फिर बाते तुम्हारी सुनकर हम भी थोड़ा मुस्काएँगे
या अपने रस्ते जाएंगे या लिखने को कलम उठाएंगे।
मैं तुमसे प्यार कर ही लूँ चाहे तुम मुझ से कर ना पाओगे
फिर होगा यूँ इस बात से, हर बात पे लिखवाओगे ।
एक बात कहेंगे तुमसे कि चाहे तुम जिल्द सजाते हो,
जो बात समझ नही आती है , उसे अच्छे से समझाते हो।
-रचना