आप जहां जा रहे है उस दिशा में जाने वाली गाड़ी के इंतज़ार में है, गाड़ी आती है आप उसमें चढ़ जाते है,दो स्टेशन के बाद गाड़ी उल्टी चलने लगती है , आप हैरान होते है, किसी से कुछ पूछते नही और खुद पर ही शक करते है कि शायद आप ही गलत गाड़ी में चढ़ गए होंगे । आप दो स्टेशन पीछे जाकर फिर से आपके जाने की दिशा वाली गाड़ी में बैठ जाते है और गाड़ी फिर से दो स्टेशन आगे जाके उल्टी चलने लगती है। अबकी बार आप बगल वाले से पूछ लेते है कि 'ये गाड़ी उल्टी क्यों चल रही है' ?
बगल वाला इंसान कहता है कि क्योंकि ये गाड़ी तो यहीं तक आती है इसकी डेस्टिनेशन तो यही है, आपको कहाँ जाना है?
अरे हां! ऐसा भी होता है कि आपकी दिशा में जाने वाली हर गाड़ी, जहां तक आपको जाना है वहां तक तो नही जाएगी कुछ की डेस्टिनेशन बीच मे ही कहीं होती है।
आप अपनी कच्ची-पक्की समझ के भरम में इतना गुम होते है कि आपको ये यकीन होता है कि हर उस दिशा में जाने वाली गाड़ी वहीं तक जाएगी जहां तक आपको जाना है, और गाड़ी पर लिखा गंतव्य स्थान पढ़ने का होश ही नही आता, एक बार नही, दो बार आप करते है ऐसा, और जाने कितनी बार ऐसा करने की संभावना रखते है।
हालांकि आप ये बार- 2 का आना और जाना के घुमचक्कर पर घूम सकते है , ये भी एक अच्छी चीज है , अगर आपके पास वक़्त है तो, बहुत बार वक़्त का होना अपने आप ही बोर्ड पर लिखे गंतव्य स्थान पर ध्यान नही जाने देता।
और कई बार ऐसा लगना कि वक़्त नही है, अपने आप मे एक अलग तरह का भरम हो सकता है?
पर वक़्त की बात छोड़ देते है और आपकी अपनी बात करे तो,
जिनको पता होता है कि वो कहाँ जाना चाहते है (सही में पता होता है) वो एक ही बार में गलती सुधार लेते है और अगली बार देख कर गाड़ी में चढ़ते है, और जिन्हें पता नही होता कि असल मे उन्हें पहुंचना कहाँ है ( सही में नही पता होता) वो एक बार, दो बार, पता नही कितनी बार बीना गंतव्य स्थान पढ़े, सिर्फ उस दिशा में जाने जाने वाली गाड़ियों में बैठते रहेंगे और उल्टे लौटते रहेंगे , बशर्ते उनके पास वक़्त खूब हो।
जीने के अंदाज़ सबके चाहे अलग -2 हुआ करे पर एक वक्त आता है जिसके हाथ मे एक लगाम होती है और वो लगाम खींच कर आपके ध्यान को बोर्ड पर लिखे गंतव्य स्थान को पढ़ने पर ले जाता है।
-Rachna