Monday, November 4, 2013

अकारण

कारणों से परे हटकर अगर कुछ बचा  है तो वो तुम हो
तर्क और तथ्यों  से परे हटकर अगर कुछ घटा है तो वो तुम हो  …. 
तुम दिवा -सव्प्न्न से!
पहले ही तर्क से ढेर हो सकते थे …
पर तुम नहीं हुए, अकारण जो थे 
फिर भी मै लड़ी 
जितने तीर तर्कों के थे मेरे तरकस में 
सब तुम्हारे आस्तित्व के कारणों पे चला दिए 
परन्तु एक भी तीर निशाने पे ना  लगा 
क्युकी  ……… 
क्युकी कारणों से परे हटकर अगर कुछ बचा है तो वो तुम हो 
                                                                     -रचना

ग़ज़ल

मुझे खोजने निकला था जो, वो खुद राह भटक गया
मै खोज - खोज कर उसे दर -ब -दर गुजर गयी 

हारकर मेरी मंजिले ही मुझे ढूंढने निकल पड़ी  
मै राह की धूल के साथ बिखरी हुई उनको मिली 

इस रूह की उदासिया मै जाने कहाँ से लायी हू 
मेरी किस्मतो में वो रात है , जिस रात की सुबह नही 

मुझे तोड़ कर जो वो देखता तो पता चलता उसे 
मै सहरा दर सहरा हू  कोई खुशनुमा समंदर नहीं 
                                                        -   रचना