Monday, November 4, 2013

ग़ज़ल

मुझे खोजने निकला था जो, वो खुद राह भटक गया
मै खोज - खोज कर उसे दर -ब -दर गुजर गयी 

हारकर मेरी मंजिले ही मुझे ढूंढने निकल पड़ी  
मै राह की धूल के साथ बिखरी हुई उनको मिली 

इस रूह की उदासिया मै जाने कहाँ से लायी हू 
मेरी किस्मतो में वो रात है , जिस रात की सुबह नही 

मुझे तोड़ कर जो वो देखता तो पता चलता उसे 
मै सहरा दर सहरा हू  कोई खुशनुमा समंदर नहीं 
                                                        -   रचना 

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