आह ! कांटे !...... उनके पास से गुजरो तो दामन को पकड कर ऐसेखींचते है कि जैसे बरसो से हमारे ही इंतज़ार में खड़े थे कि जैसे अब आये हो अब तो ना जाने देंगे बहुत हिसाब लेने है ... बहुत सवाल करने है.... उलझ जाते है दामन में और दामन को भी उलझा लेते है.. बिना उन से उलझे अंजानो सा बेखबर गुजर जाना संभव नहीं...., कांटे ...उफ्फ् कैसे रोक लेते है ...जाने नही देते ...इतनी शिद्दत ....,
मोहब्बत हो जाती है मुझे इन कांटो से...... और कांटे जैसे इंसान से.....फूलो पे कभी प्यार नहीं आता उन में इतना खिचांव नहीं की मेरे चलते हुए कदमो को रोक ले....पर कांटे कितने जिद्दी है
अल्लाह ! मोहब्बत हो तो कांटो जैसी वर्ना हो ही ना ....
जब कांटो को दामन से अलग करती हु तो मै खूब रोती हु..... और मजाल भी बस उन्ही की है कि मुझे रुला दे.....( कोई समझेगा क्या राज़ ए गुलशन .... जब तक उलझे ऩा कांटो से दामन )
मोहब्बत हो जाती है मुझे इन कांटो से...... और कांटे जैसे इंसान से.....फूलो पे कभी प्यार नहीं आता उन में इतना खिचांव नहीं की मेरे चलते हुए कदमो को रोक ले....पर कांटे कितने जिद्दी है
अल्लाह ! मोहब्बत हो तो कांटो जैसी वर्ना हो ही ना ....
जब कांटो को दामन से अलग करती हु तो मै खूब रोती हु..... और मजाल भी बस उन्ही की है कि मुझे रुला दे.....( कोई समझेगा क्या राज़ ए गुलशन .... जब तक उलझे ऩा कांटो से दामन )
जिल्लेलाही , काँटों को मुरझाने का खौफ नहीं होता
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