Wednesday, October 7, 2015

बात पे दो बात

मुझे सौ तरह से गुमान था
हर लफ्ज पे इत्मीनान था
मेरे ख्वाब में एक मकान था
उसमे खुला हुआ एक दालान था
थी सुर्ख सुबह से दोस्ती
हर शाम के संग संग मैं ढली
मुझ पे नींदे मेहरबान थी
सर पे ख्वाबो का आसमान था
मैं थी हवा के संग डोलती
तितलियो के कानो में थी बोलती
हर पेड़ की शाख से पहचान थी
पानी पे भी पैरो की छाप थी
वो गली के किनारो पे जो पेड़ था
जिसपे मीठे बेरो का ढेर था
उसे मुझ से कुछ ज्यादा प्यार था
मेरी झोली में बेरो का ढेर था.............

पर किसको ख्याल था.....
जिस वक़्त का मुझ पे अहसान था
उस वक़्त के हाथो में जाल था
फिर मैं सौ तरह से फंसाई गयी
सांस सांस के संग रुलाई गयी
हँसी हँसी में मैं यू उड़ाई गयी
बिखरे धान सी फिर ना उठाई गयी.

थक गया वक़्त फिर मुझ से क्या मांगता
खुद मेरे ही हक़ में दुआ माँगता............

1 comment:

  1. शानदार..... जबरदस्त, जिंदाबाद।

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