Friday, March 25, 2016

किताब

किताब... बस एक किताब, किताब जिसमे कागज़ बंधे है और कागज़ पे बिखरे है अक्षर.. तुम कभी सोच सकते हो इन अक्षरों में कितनी ताकत है ??
नहीं सोच पाओगे ! 
क्यों ?? 
क्युकी कभी पाला ही नहीं पड़ा !
क्युकी कभी पाला ही नहीं पड़ा किसी कहानी से .... कहनी जो तुम्हारी आत्मा तक को छू ले और तुम्हारी सुखी हुई आँखों को जल से भर दे , और तुम्हे समझा दे झटके में कि जीवन वही है जिसमे तुम मरते दम तक अपनी भावनाओ को बचा लो। 

नहीं सोच पाओगे क्युकी कभी पाला ही नहीं पड़ा किसी कविता से !
कविता जो तुम्हारी नींदे उड़ा दे और तुम्हारे संसार को आश्चर्य से भर दे कि अहा ! जीवन का ऐसा सुंदर रूप मैं पहले क्यों नहीं देख पाया और कविता जो तुमको प्रेम समझाए कि क्यों ऐसा होता है कि कोई प्रेम में पड़कर एक ही इंसान को हजारो -हजारो तरीके से समझता है और इंसान को समझते समझते वो एक दिन खुद को समझ जाता है और तब उसे समझ आता है कि प्रेम इसलिए है कि ईश्वर चाहता है तुम खुद को समझो और तब तुम इच्छा करो कि मेरा जीवन कविता बन जाए या मैं किसी के जीवन का कवि !!

नहीं सोच पाओगे .... क्युकी कभी पाला ही नहीं पड़ा किसी उपन्यास से !
ऐसी ऐसी  महगाथाये जिनमे जीवन के अनेको संघर्ष लिखे हुए है ठीक वही संघर्ष जो तुम कर रहे हो इस वक़्त, क्या पता कोई उपन्यास तुम्हारा ही जीवन हो और कोई पात्र तुम ही होओ. उस अचम्भे को कैसे समझ पाओगे कि कैसे लिखने वाले ने मेरे मन के हालातो का पता लगा लिया , नहीं समझ पाओगे क्युकी कभी पाला ही नहीं पड़ा। 
और मैं  कहती हूँ तुम्हारा पड़ना ही चाहिए , पड़ना ही चाहिए  इस जादू से। ... जो सपने बोता  है 
भावना को बड़ा करता है , दिलो को साफ़ करता है, मन को निखरता है और इंसान के रूप में तुम्हे इंसान सा बनता है। 

तुम ही कहो मुझे ....   
क्या इंसान एक आलिशान घर है ? क्या इंसान होना सिर्फ दो वक़्त तक सिमटने वाली बात होना है ?क्या इंसान रुपयों का जोड़ है? गहना है ? जमीन है ?..........  क्या है ???

नहीं ! इंसान ये सब नहीं है ये सब तो साधन है ,जीवन को सफल बनाने  में सहायक है पर जीवन इनमे नहीं बसता  है। 
इंसान तो धड़कते हुए दिल है ,इंसान बहती हुई भावना है। इंसान इसलिए है कि  वो खुद को समझे , ना कि  इसलिए है कि  वो घरों को समझे , पत्थरों को समझे , गहनों को समझे। 
पेट के लिए खाना जुटा  लिए ,
तन के लिए कपडा जुटा  लिए 

आत्मा के लिए क्या जुटा रहे हो , क्या जरुरत भी लगती है कि आत्मा को भी भोजन की जरुरत है ?
आत्मा का भोजन है विचार .... चिन्तन .... मंथन ....
और इन सब को पैदा करती है एक किताब !!!    

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