Sunday, December 25, 2011

ये राज़ बयाँ कर तु

आँखों में जो उभरे है वो अल्फाज बयाँ कर तु
कैसे है कटी जिंदगानी कुछ हाल बयाँ कर तु
आँखों से टपक गये आंसू इतना क्यों हँसी हो तुम 
कोई बात तो होगी ही वही बात बयाँ कर तु 
हर राह ख्यालो की थम -थम के चली हो तुम 
कुछ तो बदली होगी तेरी चाल बयाँ कर तु 
आँखों और तब्सुम को रुक -रुक के निहारो तुम 
आँखों में क्या रक्खा था ये राज बयाँ कर तु ...
                                                                    - रचना 

Sunday, December 18, 2011

कही कोई कविता ना "मर" जाये

आजकल हर जज्बात की आत्मा
पथरो की दिवार में कैद है 
कि ऐसे में कोई कविता कैसे उभर पाएगी 
आजकल शब्द ऐसे सोये है कि 
जगने में उन्हें आलस आता है 
ऐसे में कोई कविता कैसे निखर पाएगी 
आजकल कड़वा धुँवा-२ सा 
घुटा है अंदर 
कि ऐसे में कोई कविता कैसे साँस ले पाएगी 
अब तो अंदर के इस माहौल से
 मै डरी हुई हु कि ...
इस माहौल में कही कोई कविता ना "मर"  जाये ....

Friday, December 16, 2011

सब अरमां किधर गये

या रब मेरे दिल के सब अरमां किधर गये
हम जिन्दा है फिर भी ये लगता है की मर गये 
ये रास्ते तन्हा से , सुनसान से है अब 
लोगो के अपने घर है सब अपने घर गये 
कहा के ख्वाब, ख्वाहिशे अब कोनसी बाकी 
जिन्दगी की धूप में सब के सब जल गये 
यू जिन्दगी की तोहमते सहने का गम तो है 
होता नही असर लगता है की मर गये !!!
                                                          - रचना 

Tuesday, December 13, 2011

सन्नाटा सा है

मेरे शब्द मेरे दिल में कही जम गये है
ना अब वो हिलते है ना  कोई हलचल है उनमे
वो जिन्दा तो है पर मरे मरे से लगते है 
जैसे जम गयी हो उन पे ढेर सारी बरफ
           वो चाहते तो है .....
चीखते चिल्लाते इस मौन को तोड़ दे
पर वो बेजान है ,उनमे अब इतनी ताकत नहीं 
कभी -कभी कोशिश भी करते है कि
इस मौन से गुजर कर बाहर आये 
पर रास्ते में ही थक कर गिर पड़ते है 
                 कि
मेरे शब्द खुद टूट गये है 
मेरे मौन को तोड़ने कि कोशिश में ...........