निर्दोष भावना !!!
दिल में उभरती है और जेहन से होते हुए
शब्दों का आवरण ओढ़ बाहर आती है
और बन जाती है
कमबख्त कविता !!!
कविता जो ना छुपाते बनती है
ना सुनाते बनती है
कविता कहती है मुझे पन्नो पे उतारो और
लोगो के सामने पेश करो
और मै चिल्लाती हु कि जरुरत ही क्या है ऐसी!!
कविता कहती है मै इतना लम्बा सफ़र तय करके आई हु
अब तो मेरा प्रदर्शन होना ही होगा
मै ठगी सी कहती हू
पर ये मेरे मरने जैसा होगा
तो कविता हँस कर कहती है
और कविता है ही क्या
तेरे वजूद के टूटे टुकडो के सिवा !
तेरे टूटे हुए टुकड़े ,मरे हुए हिस्से ही तो बिखरे है पन्नो पर
कविता का पन्नो पे बिखर जाना
मेरे लए जैसे अपने किसी हिस्से के खो जाने जैसा है
फिर भी मै खोती हु जाने क्यों ??
अब तो मै कविता लिखती रहती हू और
थोड़ा-थोड़ा कविता दर कविता
बिखरती रहती हू ,मरती रहती हू
जब भी मै खुद को इन पन्नो पे बिखरा देखती हू
तो शर्मिंदा सी सोचती हू
आखिर मै कविता क्यों लिखती हू!
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सुन्दर रचना है , विशेषकर निम्न पंक्तियाँ
ReplyDelete"कविता का पन्नो पे बिखर जाना
मेरे लए जैसे अपने किसी हिस्से के खो जाने जैसा है
फिर भी मै खोती हु जाने क्यों ?? "
"लए" को मात्र ठीक कर लें
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ReplyDeletekavita ka parichay kavita rup me bahut achcha hai
ReplyDeletewaah bahut khuub
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