Saturday, January 7, 2012

बेकार की बात

कौनसे चैन -ओ -करार की बात करते हो
छोडो ! ना! क्यों बेकार की बात करते हो 
अब तक की उमर तो झिड़कियो  में गुजार दी 
जाने तुम कौनसे दुलार की बात करते हो 
हम लाखो गमो में भी मुस्करा के जिन्दा है 
तुम तो रोते हुए कुछ हज़ार की बात करते हो 
ये थोडा परायापन दुनिया से ठीक ही है मेरा 
नाहक ही तुम इसमें सुधार की बात करते हो
यकी नही करते बदलाव छलावा है वक़्त का 
ओह ! फिर से तुम किसी आसार  की बात करते हो  
जो रोक लेती  है तुम्हे गहरी खाइयो में गिरने से 
शुक्र है ! कभी -कभी तुम ऐसी दिवार की बात करते हो  
हमारे ख्वाबो के महल तो है खंड -खंड हुए 
तुम घबराए से क्यों हल्की दरार की बात करते हो 
एक आवाज़ थी और हम खड़े है अभी तक 
हाय! तुम क्यों किसी पुकार की बात करते हो 
लगता है पूरी उमर किसी नशे में गुजार दे 
जब जब भी तुम किसी खुमार की बात करते हो 
जिसमे डूब कर पाते  है हम खुद ही को 
क्या तुम भी ऐसे ही प्यार की बात करते हो ??
                                                                    - रचना 




1 comment:

  1. really very niceeee....
    superb...
    publish ker de...
    teri book khub bikegi...

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