Wednesday, October 7, 2015

बात पे दो बात

मुझे सौ तरह से गुमान था
हर लफ्ज पे इत्मीनान था
मेरे ख्वाब में एक मकान था
उसमे खुला हुआ एक दालान था
थी सुर्ख सुबह से दोस्ती
हर शाम के संग संग मैं ढली
मुझ पे नींदे मेहरबान थी
सर पे ख्वाबो का आसमान था
मैं थी हवा के संग डोलती
तितलियो के कानो में थी बोलती
हर पेड़ की शाख से पहचान थी
पानी पे भी पैरो की छाप थी
वो गली के किनारो पे जो पेड़ था
जिसपे मीठे बेरो का ढेर था
उसे मुझ से कुछ ज्यादा प्यार था
मेरी झोली में बेरो का ढेर था.............

पर किसको ख्याल था.....
जिस वक़्त का मुझ पे अहसान था
उस वक़्त के हाथो में जाल था
फिर मैं सौ तरह से फंसाई गयी
सांस सांस के संग रुलाई गयी
हँसी हँसी में मैं यू उड़ाई गयी
बिखरे धान सी फिर ना उठाई गयी.

थक गया वक़्त फिर मुझ से क्या मांगता
खुद मेरे ही हक़ में दुआ माँगता............

Monday, September 14, 2015

सही जगह

ऐसा कभी नहीं था कि जिंदगी हम से नरमी से पेश आयी हो , बल्कि वो तो खुद जितनी सख्त है उस से भी दस गुना सख्ती से पेश आयी , पर हमने भी पत्थर जैसी सख्त जिंदगी को अपने सर पे बरसने देने कि बजाए अपने कदमो के नीचे बिछाया और अपनी राहो को पक्का व मजबूत कर लिया !
यक़ीनन जिंदगी खुश है क्युकी इसी काम में आने के लिए ही तो सख्त थी  सख्त है 
 शुक्रिया जिंदगी !!!!!!

सर पे चढ़ने का मौका हमने सिर्फ और सिर्फ प्रेम को दिया , बस एक प्रेम ही है जो हमारे सर चढ़ के बोल सकता है

कहते सुना है लोगो को कि - कहाँ की मोहब्बत , कैसी मोहब्बत इस कठोर जिंदगी के आगे मोहब्बत कुचली ही जाती है।  हम हैरान परेशान  जाइये जनाब कैसी बाते करते है !
जरुर आप कठोर जिंदगी को सर पे बरसने दे रहे होंगे , सर पे बिठा के चल रहे होंगे  तब तो मोहब्बत पैरो के नीचे कुचली ही जायेगी। आपकी जिंदगी पे मोहब्बत नहीं बरस रही ये आपकी नियति नहीं चुनाव है।  जगह बदल के देखिये जरा !!!

बाकी पत्थर जैसी जिंदगी राहो में बिछी हो और मोहब्बत सर पे चढ़ के नाच रही हो तो जिंदगी ने मुझे सम्भाल रखा है और मोहब्बत ने मुझे सँवार रखा है !!!!

कांटो सी मोहब्बत

आह ! कांटे !...... उनके पास से गुजरो तो दामन को पकड कर ऐसेखींचते है कि जैसे बरसो से हमारे ही इंतज़ार में खड़े थे कि जैसे अब आये हो अब तो ना जाने देंगे बहुत हिसाब लेने है ... बहुत सवाल करने है.... उलझ जाते है दामन में और दामन को भी उलझा लेते है.. बिना उन से उलझे अंजानो सा बेखबर गुजर जाना संभव नहीं...., कांटे ...उफ्फ् कैसे रोक लेते है ...जाने नही देते ...इतनी शिद्दत ...., 
मोहब्बत हो जाती है मुझे इन कांटो से...... और कांटे जैसे इंसान से.....फूलो पे कभी प्यार नहीं आता उन में इतना खिचांव नहीं की मेरे चलते हुए कदमो को रोक ले....पर कांटे कितने जिद्दी है 
अल्लाह ! मोहब्बत हो तो कांटो जैसी वर्ना हो ही ना ....
जब कांटो को दामन से अलग करती हु तो मै खूब रोती हु..... और मजाल भी बस उन्ही की है कि मुझे रुला दे.....( कोई समझेगा क्या राज़ ए गुलशन .... जब तक उलझे ऩा कांटो से दामन )

Monday, September 7, 2015

अब पर्दा गिराते है


तहे ... परते और एक के बाद एक किरदार बदलता चरित्र.... बहुत खूब !!!  मैं नन्ही सी जान और इतने सारे किरदार निभाने है और हर किरदार की तहो में  उतर कर उसकी आत्मा को छू के आना .... आहा!!!  हमे गर्व है हम अभिनेत्री है  और ये जीवन हमे जो किरदार देता है हम अपनी पूर्ण दक्षता से उसे छूकर गुजरते है , हालाँकि किरदारों के मोहपाश में तब तक ही रहते है जब तक हम उस किरदार को जी रहे होते है! अदभुत मायाजाल !
कहानी खत्म , किरदार ख़त्म ,जेहन में बची रही उसकी खुशबु  आखिर  यही खुशबू पाना ही तो था उद्देश्य , हम अपनी आत्मा में महक लिए ढेरो किरदारों की जीते चले जा रहे है

पर्दा उठने वाला है ...हम तैयार है ..डूबने को... तैरने को...हँसने को... रोने को... ये वो वक़्त है जब हम में किरदार उतरेगा... और हम किरदार हो जाएँगे...

अबकी बार मुझे जुआ खेलना अच्छे से आना चाहिए , अंतिम दांव के अंतिम क्षण  के पहले वाले क्षण तक यही लगे कि मै  हार रही हूँ  और फिर.......
हालांकि मैं जीत गयी तो जीत के मैं बहुत उदास होऊंगी, क्योंकि मै जानती हूँ हार ही नियत हैं, नियति है, 
ये जानकार भी कि हार ही होगी, मै हर दांव खेलूंगी अंतिम हार तक!!!   जैसे सारी हार- जीत कायनात ने मेरे लिए ही रख छोड़ी हो !!
              
                        "" ये बड़ी प्रतिस्पर्धा है ""  

 गहरी भी है और दोहरी भी हैं जिस से है वो शक्ती भी देती है हथियार भी देती है और विरुद्ध खड़ी होके मात भी देती हैं, और हार को जानकर भी जो मैं खेल रही हूँ उसपे मुग्ध होते हुए अभिमान भी देती है....

Saturday, August 8, 2015

प्रेम की दो बात

उफ्फ !!! मै  कैसा महसुस  करती हूँ ??
मै  कहती हूँ कि  मै  बहरी हूँ… इसका मतलब ये नहीं कि  मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ता … इसका मतलब ये है कि मै पल पल इतनी चीखो से घिरी हुई हूँ कि उनके सामने सिर्फ बहरा ही हुआ जा सकता है ....... 
सिर्फ मेरे "बहरी हूँ ' कहने भर से क्या तुम समझोगे कि मै कैसा महसूस करती हूँ…… पर कहूँगी मै इतना ही, ये तय है। 

ओह ! तुम, जो कहते हो कि मुझ से प्रेम करते हो …… तुम सुनो कि मुझ से प्रेम करने से पहले तुम्हे ये जानना होगा कि मै कैसा महसूस करती हूँ वरना तो तुम मुझे एक कठोर ह्रदय से ज्यादा कुछ नहीं समझोगे।
               
                      तुम्हे अपनी आत्मा तक को जिन्दगी कि कड़ी धुप में सूखने देना होगा ……, इतना सूखने देना होगा कि वो जरा सी चोट से कड़- कड़ करके टूट जाए , समय कि चक्की में उसे निर्दयता पूर्वक  महीन -महीन 
पिसने देना होग ……  और फिर अचानक ही सांस कि हवा से उस के कण कण को बिखर जाने देना होगा .......  
और !! उसके बाद गुजारते रहना अपना पूरा जीवन ....... और कितने जीवन उस के कण कण को इक्कठा करते रहने में , जबकि तुम अच्छी तरह से जानते हो कि तुमने अपनी आत्मा के साथ ये सब " हो जाने दिया ". 

अब समझो मै कैसा महसूस करती हूँ.…, यही मेरी जिन्दगी है , मुझे हर पल लगता है मेरी जिन्दगी एक शून्य के अलावा कुछ भी नहीं , जहाँ से शुरु हुई अंत वही पे होगा …  एक निरर्थक बक - झक !
ओह ! फिर भी मै दौड़ती  तो हूँ  ही , कभी इस अंश के पीछे , कभी उस अंश के पीछे !!!

और तभी तुम आकर मुझ से कहोगे  कि तुम्हे मुझ से प्रेम है.......  तो तुम्हे क्या लगता है  कि मै तुम्हारी इस प्रेम से हरी - भरी आत्मा  को देखकर  इसकी छाँव में आराम करने का सोचूंगी ……, नहीं ! हरगिज नहीं !
बल्कि मै विरक्त भाव से गुजर जाउंगी। 

और तुम !!! सुनो … हाँ तुम  जिस पर मुझे प्रेम आ जाता है , तुम जिसे देखते ही महसूस हो जाता है कि तुम कैसा महसूस करते हो ....... ,  और मेरा यही विचार कि काश ! हम अपनी अपनी आत्मा के अंशो कि खोज साथ साथ करे .......  यही साथ का विचार ही मेरा तुम्हारे प्रति प्रेम है।  ना तो तुम निश्चित जानते हो  कि तुम्हारे हिस्से कहां उड़ गये ,ना तो मै .......  पर इतना जरुर लगता है कि आत्मा के वो दोनों हिस्सों को जो हवा उड़ा  उड़ा ले गयी , एक ही दिशा  की ओर गयी थी। 

मैंने कही सुना था निरर्थक जीवन को अर्थ प्रेम देता है , तो इस पाए हुए को खोना और ढूँढ के फिर से पाने  -खोने  के निरर्थक जीवन में साथ का ही अर्थ मालुम होता है।  ये साथ ही प्रेम है।